जाने, किन तीन दोषों पर निर्भर है हमारा शरीर
सेहतराग टीम
दो व्यक्तियों के बीच असमानता मुख्यत: तीन महत्वपूर्ण सिद्धांतों के कारण होती है, जिन्हें 'दोष' कहते हैं। ये दोष महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि ये दिमाग और शरीर को जोड़ते हैं। जब इन दोषों में वृद्धि होती है या ये असंतुलित होते हैं तो दिमाग और शरीर के बीच का संपर्क टूट जाता है। ये तीन दोष हैं- वात, पित्त और कफ। ये दिमाग और शरीर की हजारों विभन्न क्रियाओं को नियंत्रित करते हैं।
वात दोष:
यह कोशिकाओं तथा शरीर की ऊर्जा के मूल स्तर सहित शरीर की सभी गतविधियों को नियंत्रित करता है।
पित्त दोष:
यह पाचक अग्नि और अत: स्त्रावी ग्रंथियों के आंतरिक स्त्रावों को नियंत्रित करता है।
कफ दोष:
यह मुख्यत: शरीर की संरचना को नियंत्रित करता है। जिसमें कोशिकाएं, ऊतक और शरीर में उनकी ऊर्जा का मूल स्तर शामिल करता है।
शरीर की ऊर्जा के प्रत्येक स्तर में इन तीन दोषों का होना बहुत जरूरी है। व्यक्ति में वात दोष होना चाहिए, जो श्वसन क्रिया, हृदय गति तथा रक्त संचार को नियंत्रित करता है, पाचन में वृद्धि करता है और दिमाग को चलने की ऊर्जा देता है।
पित्त दोष जो पाचक अग्नि होता है, जो भोजन के पाचन और पूरे शरीर में जल तथा वायु के स्तर को नियंत्रित करता है। कोशिका या अंगों के प्रत्येक भाग, जैसे मांसपेशी, वसा और हड्डियों को साथ रखने के लिए कफ दोष आवशयक है। जब एक आयुर्वैदिक चिकित्सक आपको वात प्रकृति वाला बताता है तो इसका अर्थ है कि आपके शरीर में वात दोष अधिक प्रभावी है। और अन्य दो दोष न्यूनतम स्तर पर हैं।
शरीर की प्रकृति जानने का मुख्य उद्देशय है आपके भोजन, व्यायाम, दैनिकचर्या, मौसमी व्यवहार तथा रोगों के बचाव में उपयोगी अन्य कारकों का तालमेल बिठाना। यह निश्चित है कि हमारा शरीर तीन दोषों से बना है, परंतु यह कहा जाता है कि प्रकृति संयोजक कारकों की प्रमुखता पर निर्भर करती हैं।
एक हवाई अड्डे पर विलंबित विमान की प्रतीक्षा कर रहे एक व्यक्ति का उदाहरण लें। वात प्रकृति वाला व्यक्ति बेचैन, अशांत और अधीर होकर संबंधित अधिकारी से पैसे वापस करने की मांग करेगा। पित्त प्रकृतिवाला व्यक्ति क्रोधित होकर विलंब के लिए अधिकारीयों को आलोचना आरंभ कर देगा, परंतु कफ प्रकृतिवाला व्यक्ति निष्क्रिय व चुप रहेगा।
यदि आपको स्वस्थ रहना है तो अपने शरीर की प्रकृति को जानें और उसके अनुसार चलें। अपने भोजन तथा शारीरिक गतिविधियों को एक संतुलित शरीर और दिमाग के साथ समायोजित करने पर संतुलित स्वास्थ्य की स्थिति प्राप्त की जा सकती है। दोषों, पाचक अग्नि, ऊतकों तथा उत्सर्जित पदार्थों का संतुलित होना उत्तम स्वास्थ्य की निशानी है। हर किसी में स्वाभाविक रूप से तीन प्रकार के संयोजन होते हैं। परंतु संयोजन की प्रमुखता वातज, पित्तज तथा कफज को निर्धारित करती है।
(यह आलेख टी. एल. देवराज द्वारा लिखी गयी किताब आयुर्वेद और स्वस्थ जीवन से लिया गया है)
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